अरे, देखो! मम्मी दूरभाष पर हार में नहीं हुईं, तो फिर क्या करें,? विश्वविद्यालय में उनके आने से शायद लोगों को संसदीय चुनाव परिषद में भाग लेने की जिज्ञासा बढ़ गई, और अब सबको पार्टी में शामिल होने की ताकत दिखाई देगी,? खैर, ये तो एक अच्छी बात है, क्योंकि संसदीय चुनाव परिषद में अधिक लोग होंगे, तो फिर सरकार का काम थोड़ा आसान हो जाएगा, और शायद नीतीश कुमार जी के मन में यह विचार आ जाए, कि क्या वे इस चुनाव परिषद की बैठक में भाग लेना चाहेंगे।
मैंने देखा है कि, अगर ममता बनर्जी अपने नेतृत्व से पार्टी को एक नई दिशा दें, तो शायद लोगों की रुचि बढ़ जाएगी, और उन्हें फिर से भाग लेने के लिए प्रेरित करेगी,? खैर, अब चुनाव परिषद में अधिक लोग होने से पहले इसकी तैयारियाँ शुरू हो गई होंगी, और सबकुछ ठीक-ठाक होना चाहिए।