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बिहार के चुनाव में कई अनामुमकिन दांव लगाए गए हैं। विपक्ष ने पूरी तरह से राजनीतिक स्थिति को बदलने का प्रयास नहीं किया, बल्कि अपने हिसाब से बिहार की जनता को गुमराह करने की कोशिश की।
 
🤔 मुझे लगता है कि चुनावों में कई दांव लगाने की परंपरा हमारे समाज की नकारात्मकता को बढ़ावा देती है। लोग चुनाव में अपने वोट का निर्णय करने से पहले बहुत सोचते हैं और फिर भी कई बार गलत फैसला लेते हैं।

मुझे लगता है कि हमें अपने देश को एक बेहतर जगह बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। हमें अपने राजनेताओं से पूछना चाहिए कि वे हमारी जरूरतों को कैसे पूरा करेंगे। और हमें अपने वोट का निर्णय समय पर लेना चाहिए ताकि हम अपने देश को बेहतर बनाने में मदद कर सकें। 🙏
 
मुझे लगता है कि विपक्ष ने यहां एक बड़ा मौका खो दिया। अगर उन्होंने अपने प्रदर्शन अच्छा किया था, तो उन्हें फायदा होता। लेकिन अब, जनता को यह महसूस हुआ होगा कि विपक्ष ने अपनी बात नहीं कही।

लेकिन, साथ ही, मुझे लगता है कि विपक्ष की आलोचना करने से पहले, हमें जनता की भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए। क्या जनता सही तरीके से जानकारी प्राप्त कर रही थी? या फिर विपक्ष ने अपनी बात कहने में गलतियाँ कीं?

मुझे लगता है कि हमें अपने आप को इस समस्या से परेशान नहीं करना चाहिए। बिहार के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम दोनों पक्षों की आलोचना करें, लेकिन अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखें। 😐
 
चुनावों में ऐसी बातें कहना कोई नई चीज़ नहीं है। लेकिन आज भी विपक्ष ने अपने दांव लगाए और पूरे बिहार को चकमा देने की कोशिश की। यह तो समझ में आता है, लेकिन हमें सोचना चाहिए कि ये दांव लोगों के मन को कैसे छू रहे हैं। क्या विपक्ष ने अपने प्रतिद्वंद्वियों की गलतियों पर चर्चा नहीं की, उनसे सीखने की कोशिश नहीं की।

अब लोगों को ऐसी जानकारी मिलती है जिसे वे आसानी से समझ भी नहीं सकते। और यह तो हमारे चुनावी प्रक्रिया को बुरा दिखता है। लेकिन फिर भी, हमें अपने मतपत्र डालने से पहले खुद पर विचार करना चाहिए।
 
चुनाव में कुछ ऐसा हुआ है जो मुझे चिंतित करता है। विपक्ष ने अपने दावों से बिहार की जनता को नीचे झुकाने की कोशिश की, न कि उसकी समस्याओं को हल करने की। यह बहुत गंभीर मुद्दे थे, जैसे कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य... लेकिन वे सब बाहर ही गए।

मुझे लगता है कि चुनाव में हमें अपनी भूमिका को अच्छी तरह से समझना होगा। हमें अपने देश के भविष्य के बारे में सोचते समय, यह याद रखना ज़रूरी है कि हर चुनाव एक नई शुरुआत है। लेकिन अगर हमारी विरोधी पक्ष हमें धोखा देते हैं, तो आगे कैसे बढ़ते हैं? मुझे लगता है कि हमें अपनी राजनीति से जुड़ी लोगों की बात सुननी चाहिए, उनकी समस्याओं को समझना चाहिए और उनके दिलों को जीतना चाहिए। 🤔
 
मेरी बात यह है कि चुनाव में विपक्ष को थोड़ी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। वे पूरी तरह से अपने दावों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। उनके नेताओं की बोलियां सिर्फ़ गाली-गलोच में फस जाती हैं और सारी राजनीति एक ही नोट पर चली जाती है।
 
बिहार की चुनावों में तो बहुत दिलचस्पी लग रही है 🤔। विपक्ष ने जरूर अच्छी प्लेन बनाई थी, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने हिसाब से जनता को मनाने की कोशिश करनी चाही। तभी हमारे देश में इतनी भ्रष्टाचार की बात कही जाए, लेकिन यही हमारे राजनेताओं को अपना काम ठीक से समझने में बाध्य करता है। अगर विपक्ष ने खुद कुछ अच्छा पेश करने की कोशिश की होती, तो दूसरे गिरोह पर यह दांव लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन ऐसा लगता है कि हमारे राजनेताओं ने अपने आप से और जनता को भी दिलासा देने की जरूरत समझी, तभी बिहार की जनता को गुमराह करने की बात नहीं कही।
 
बिहार में चुनाव के नतीजों से दिलचस्प है कि विपक्ष ने कई अनामुमकिन बेतुके दांव लगाए और जनता पर उनकी गुमराह करने की कोशिश की। मुझे लगता है कि यह एक बड़ा फेल है, क्योंकि जनता जानती है कि राजनीतिक स्थिति बदलना आसान नहीं है। विपक्ष ने अपने दांव को पूरे खिलाड़ी की तरह लगाया, लेकिन यहाँ जनता को चुनावों में जागरूक करना बहुत जरूरी है।
 
अगर विपक्ष ने पूरी तरह से राजनीतिक स्थिति को बदलने का प्रयास नहीं किया, तो यह अच्छा होगा। लेकिन अगर उनका उद्देश्य बिहार की जनता को गुमराह करना है, तो वास्तव में इससे बड़ा गलत हो सकता है। चुनावों में ऐसा होना आम तौर पर बहुत अनुमानित नहीं होता।
 
अरे, मैं तो देख रहा हूँ कि भले ही चुनावों में बहुत बड़ा दांव लगाया गया, लेकिन विपक्ष की जासूसी और प्रतिक्रियाएँ बिल्कुल सही नहीं थी। उन्हें यहाँ तक पहुँचने से पहले अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बड़ा दांव लगाया, लेकिन बाकी दलों को एक-एक करके ही बाहर करने की जरूरत थी।
 
बिहार में चुनाव कैसे तय होता है यह देखकर मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ 🤔, पूरी तरह से राजनीतिक गेम खेलने लगे और जनता को गुमराह करने की कोशिश करना एक अजीब नाटक है। लेकिन अगर हम सच्चाई की दुनिया में जाएं तो यहां पर चुनाव का फैसला कैसे होता है यह समझने की जरूरत है कि सामान्य जनता कितनी चिंतित और अनिश्चित है।
 
बिहार के चुनाव में विपक्ष ने बहुत थोड़े-मोटे दांव लगाए हैं, जबकि भाजपा पूरे राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की कोशिश कर रही है। यह तो बिल्कुल सुनसान नहीं है, लेकिन मेरे ख्याल में विपक्ष ने अपनी जिम्मेदारियों को समझ गया है और अपने समर्थकों को सही मार्ग पर रख रहा है। अगर भाजपा पूरी तरह से राजनीतिक स्थिति को बदलने की कोशिश करेगी, तो विपक्ष को खुद तैयार रहना होगा।
 
मुझे यह देखकर खुशी है कि बिहार के लोग अपने हकumat पर वोट करेंगे। माने जाते ये अनामुमकिन दांव, लेकिन जनता हमेशा अच्छाई को चुनती है।
 
अगर विपक्ष ने हां-पंहुच्छ से नहीं लड़ा होता तो चुनाव में उन्होंने खूब बड़ी दांव लगा लिए थे। पूरा भागदौलत किसी एक टिकट पर चढ़ गई और विपक्ष ने बाकी सभी टिकटों पर ध्यान नहीं दिया।
 
अगर यह सच में विपक्ष ने बिहार की जनता को गुमराह करने की कोशिश की, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है 🤕। लेकिन अगर हम बात कर रहे हैं तो पूरी तरह से राजनीतिक स्थिति बदलने का प्रयास नहीं करना, तो इसका मतलब यह है कि विपक्ष ने अपने रणनीति में थोड़ा सा बदलाव नहीं किया।

बिहार की जनता बहुत ज्यादा उम्मीद करती है, खासकर चुनाव के समय। अगर विपक्ष ने अपने दृष्टिकोण में थोड़ी सी बदलाव कर लेते, तो शायद यह लोगों को अधिक प्रभावित कर देता।
 
चुनाव में दांव लगाना और जनता को गुमराह करने की कोशिश निकल रही है तो फिर विपक्ष सोच रहा है कि बिहार की जनता अपनी मूर्खता की पहचान कर लेगी? चुनाव में हर पार्टी को अपने हिसाब से जीत दिलाने का तरीका ढूंढने की जरूरत है, लेकिन फिर भी जनता की बात ध्यान में रखी जानी चाहिए। बिहार में चुनाव में नामुमकिन दांव लगाने से हमें यह सवाल करना चाहिए कि बिहार की जनता अपने वोटों को सही तरीके से उपयोग कर पाएगी या नहीं।
 
मैंने देखा है तो क्योंकि भ्रष्टाचार वाली सरकार अपने पूर्वजों के सम्मान को नहीं जानती है, इसलिए मुझे लगता है कि विपक्ष ने शायद राजनीतिक स्थिति बदलने की कोशिश की हो, लेकिन भ्रष्टाचारी सरकार को पता ही नहीं चला। तो मैं कह सकता हूँ, जानबूझकर जनता को गुमराह करने की कोशिश की है, लेकिन अगर विपक्ष ने राजनीतिक स्थिति बदलने का प्रयास नहीं किया, तो शायद उनके पास और भी अन्य दांव नहीं थे।
 
बिहार में चुनावों में सबकुछ थोड़ा असामान्य है। विपक्षी दल ने ज्यादातर अपनी राजनीतिक स्थिति को बदलने का प्रयास नहीं किया, बल्कि जनता को गुमराह करने की कोशिश की। इसका मतलब यह है कि वे हमेशा पहले थे, और अब भी पहले हैं। उनकी रणनीति में कुछ नया नहीं है, बस दोहराने-पुनाने की कोशिश। लेकिन जब तक बिहार की जनता उनकी गड़बड़ी को समझने में सक्षम न हो, तभी विपक्षी दल अपने वोटों को संभालने में सक्षम नहीं रहेगा। 😏
 
बिहार के चुनाव में ऐसा लगता है जैसे कि विपक्ष ने अपनी रणनीति साफ तौर पर समझौता कर दिया है। अगर वे इतनी आसानी से हार मानने के लिए तैयार हैं तो यह उनकी पकड़ नहीं है बल्कि हमारी असफलता।
 
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