दावा-असम सरकार ने 6 साल सिर्फ 26 बांग्लादेशी वापस भेजे: विपक्ष का आरोप- यहां भारतीय ही बांग्लादेशी घोषित; नो मेंस लैंड में रह रहे 676 परिवार

दावा-असम सरकार ने 6 साल में केवल 26 बांग्लादेशी वापस भेजे, विपक्ष का आरोप- यहां भारतीय ही बांग्लादेशी घोषित; नो मेंस लैंड पर रह रहे 676 परिवार

असम मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ 'थ्री डी पॉलिसी' यानी 'डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट' के तहत अभियान तेज किया है। जून में गोआलपारा जिले के हासिला बिल इलाके में 676 घरों को सिर्फ दो दिन के नोटिस पर तोड़ा गया था। सरकार का दावा है कि ये लोग सरकारी जमीन पर बसे अवैध प्रवासी थे, लेकिन स्थानीय नागरिक कहते हैं कि वे भारतीय हैं, उनके पास 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं।

बरपेटा जिले की पीड़ित सोना बानो कहती है- मुझे 25 मई को 13 अन्य लोगों के साथ नो-मेंस लैंड (भारत-बांग्लादेश के बीच का इलाका) में छोड़ दिया गया। दो दिन कीड़ों और जोकों के बीच रही, फिर बांग्लादेश जेल भेजी गई और बाद में भारत लौटा दी गई। मैं हमेशा से भारत में रही हूं, अब मुझे अपनी नागरिकता साबित करनी है।

विपक्ष के नेता कांग्रेस के देबब्रत सैकिया का आरोप है कि भाजपा सरकार बांग्लादेशियों को वापस भेजने में नाकाम रही है। 2016 से सिर्फ 26 लोगों को डिपोर्ट किया गया, बाकी कांग्रेस सरकार के समय हुआ था। पुशबैक कानूनी नहीं है, लोग या तो लौट आते हैं या बांग्लादेश जेल में फंस जाते हैं।
 
🤔 असम में 676 परिवारों ने अपने घरों को खो दिया है और अब उन्हें पता लगाने की जरूरत है कि वे कौन हैं? यह पूरी तरह से समझ नहीं आ रहा है। सरकार कहती है कि ये लोग अवैध प्रवासी थे, लेकिन अगर उनके पास 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं, तो यह सवाल क्या है? 🤷‍♂️

मुझे लगता है कि सरकार ने इस समस्या को सही तरीके से नहीं हल किया है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान तेज करने की जगह, हमें उन्हें पहचानने और उनकी जरूरतों को समझने की जरूरत थी। इस तरह से लोगों को अपने घरों से निकाला जा रहा है और अब उन्हें पता लगाने की जरूरत है कि वे कौन हैं। 😕
 
ज़ीरो कर देंगे भारतीय मानते वाले भी ऐसा नहीं कर सकते। नो मेंस लैंड पर 676 परिवार तोड़े गए, यह तो क्या है? पुलिस क्यों इतनी जिद्दी है? बाकी सिर्फ दावा करते हैं कि ये लोग अवैध प्रवासी थे, पर वास्तविकता अलग है। 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद होने की बात तो सच हो सकती है, लेकिन सरकार क्यों नहीं दिखाती?
 
नो मेन स्थिति कैसे हुई, यह समझ नहीं आ रहा है... सरकार एक तरफ अवैध प्रवासी घोषित कर देती है, दूसरी तरफ लोग भारतीय हैं और नागरिकता के दस्तावेज तो मौजूद हैं। ऐसा करना ठीक नहीं है। अगर वे वास्तव में अवैध प्रवासी हैं, तो उन्हें बिना सुनवाई के देश छोड़ना चाहिए, न कि नोटिस पर घरों को तोड़कर फेंकना। और अगर वे लोग भारतीय हैं, तो उनकी नागरिकता की जांच करना चाहिए।
 
मुझे यह सुनकर बहुत परेशानी हुई, जैसे कोई दुखद कथा देख रहा हूँ। यारों को पता है, इन लोगों ने भारत में अपना घर बनाया, खुद का काम करें, और भारत की सेवा की। फिर भी सरकार उनकी पहचान को नहीं मानती, उन्हें वापस भेजने की कोशिश करती है। यह तो कोई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, लेकिन कुछ सवाल उठते हैं कि क्या हमारी सरकार देश के नागरिकों के साथ सच्चाई से निपल रही है? यार, यह बात समझ में आती है कि भारत और बांग्लादेश के बीच कुछ ऐतिहासिक समस्याएं हैं, लेकिन सरकार को अपने नागरिकों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
 
क्या यह सच है कि हमारे देश में विपक्षी सरकार की तुलना में भाजपा सरकार बांग्लादेशियों को वापस लेने में खराब है? लगता है कि सरकार ने अपनी बात मानकर एक स्पष्ट नीति बनाई है, जिसमें 3D पॉलिसी के तहत उन लोगों को वापस भेजने पर ध्यान दिया जाए जो अवैध रूप से यहां घुसे हैं। लेकिन अभी तक, हमने देखा है कि सरकार ने इस प्रक्रिया में कुछ कमजोरियाँ भी दिखाई हैं, जैसे कि गोआलपारा इलाके में तोड़ा गया घरों में बांग्लादेशी लोगों की अस्पष्टता। क्या हमें सरकार से इस पर सवाल उठाना चाहिए?
 
🤔 यह सोचते हुए भी दिल खुश है कि असम सरकार ने 6 साल में सिर्फ 26 लोगों को वापस बांग्लादेश भेजा, जबकि 2016 से 676 घरों में रह रहे लोगों को नहीं रोका जा पाया। यह दिखाता है कि सरकार में सुधार की जरूरत है। क्या ये लोग वास्तव में अवैध प्रवासी थे? या फिर उनके पास अपने दस्तावेज हो गए, जिनके बिना उन्हें भारत नहीं मान सकता। यह देखकर शर्मिंदगी होती है।
 
मेरा विचार है कि यह सब कुछ ठीक से नहीं चल रहा है। सरकार का दावा है कि ये लोग अवैध प्रवासी थे, लेकिन अगर वे वास्तव में अवैध थे तो फिर भी हमें उन्हें वापस भेजने की ज़रूरत नहीं होती। और अगर वे वास्तव में भारतीय हैं तो फिर हमें उनकी नागरिकता साबित करनी चाहिए, न कि उन्हें वापस भेजने का।

मुझे लगता है कि यह समस्या बहुत जटिल है, लेकिन हमें इसका समाधान ढूँढ़ने की जरूरत है। मेरा विचार है कि हमें नो-मेंस लैंड पर रहने वाले लोगों के साथ बात करनी चाहिए और उनकी समस्याओं को समझना चाहिए। लेकिन फिर भी, मुझे लगता है कि हमें अपनी सरकार की नीतियों को बदलने की जरूरत है।

मैं सोचता हूँ कि अगर हम इन लोगों को वापस भेजने की कोशिश करते हैं, तो फिर भी हमें उनकी समस्याओं को हल नहीं कर पाएंगे। और अगर हम उन्हें नहीं वापस भेजते हैं तो फिर हमारी सरकार की नीतियाँ अनैतिक हो सकती हैं। मुझे लगता है कि यह सब एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा है, जिस पर हमें विचार करने की जरूरत है।
 
मुझे भी यह सोचते हुए अच्छा लगता है कि नाकाम होने के लिए असम सरकार को क्यों इतना दुष्कृत कर रही है? ये लोग 6 साल में केवल 26 लोग बांग्लादेश वापस भेजे? और यह तो बस इसलिए नहीं कि वे अवैध प्रवासी थे, बल्कि उन्हें भारतीय बताना पड़ रहा है? तो सरकार ने भी अपनी राजनीति बनाई है, लेकिन हमें सिर्फ 676 घरों के मामले में ये सब समझना चाहिए? 🤔
 
मुझे यह बात बहुत अजीब लगती है कि हमारा देश यहाँ तक पहुँच गया है कि हम अपने अपने लोगों को भारत छोड़कर बांग्लादेश में खुद को घोषित कर देते हैं और फिर वापस आ जाते हैं। मुझे लगता है कि यह एक बड़ा खेल है।

मेरी भाभी ने तीन साल पहले अपने पति को बांग्लादेश ले गई थी। वहाँ उसने उसकी पूरी पहचान बना दी और अब वह उसके साथ रहती हैं। मुझे यह बहुत अजीब लगता है कि हम अपने अपने लोगों को बाहर रखकर उन्हें खुद को घोषित कर देते हैं।

मैंने अभी कल एक फिल्म देखी थी, जिसमें ऐसी ही बातें थीं। मुझे लगता है कि हमारी सरकार इस स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पा रही है।
 
मेरा मानना है कि असम सरकार का दावा करना और भारतीय नागरिकता साबित करने में पूरी तरह से असफल रही, अब ये लोग अपनी जमीन से कहाँ चले गए? यह 6 साल में केवल 26 बांग्लादेशी वापस भेजने का है तो बड़ा सवाल उठता है।
 
मुझे ये सुनकर बहुत दुख हुआ 🤕। 26 सालों में केवल 676 परिवार वापस भेजने की बात सुनकर लगता है कि सरकार ने इस चीज को लेकर खुद पर भरोसा नहीं किया। और यह तो बस एक छोटा सा उदाहरण है, जितने हैं वे लोग जो अंदरूनी राजनीति में फंस गए थे। मुझे लगता है कि सरकार ने अपनी पॉलिसी पर गीला होना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकता के बारे में सब कुछ जानती हैं।
 
मुझे यह देखने का मन कर रहा है कि असम सरकार नो मेंस लैंड पर रहते वालों के साथ खेल रही है। 676 घर तोड़ने और बांग्लादेशी घोषित करने का तरीका सिर्फ़ एक राजनीतिक फायदा है, लेकिन असल में यह हमारे देश की नागरिकता और स्थायित्व पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
 
दिल को छू गया तो दिल को छू गया, ये ख़बरें सुनकर तो मुझे लगता है कि कुछ भी सही नहीं होगा। 6 साल में केवल 26 लोगों को वापस भेजना? यह तो बस एक आंकड़ा है, इसका मतलब यह नहीं होता कि बाकी सभी लोग वापस आएंगे। और ये बात, जिसे सरकार 'थ्री डी पॉलिसी' कहती है, तो मुझे लगता है कि यह बस एक राजनीतिक दावा है। क्या वास्तव में ये लोग अवैध प्रवासी थे, या फिर उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने की ज़रूरत नहीं?
 
🤔 यह सचमुच बहुत अजीब लग रहा है कि असम सरकार ने 6 साल में सिर्फ 26 लोगों को वापस भेजा और अभी तो सरकार दावा कर रही है कि ये सभी अवैध प्रवासी थे। यह बिल्कुल सही नहीं है, कई लोग भारतीय हैं जिनके पास 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं। लेकिन सरकार अभी भी उनकी नागरिकता को साबित करने की कोशिश कर रही है। यह बहुत अजीब लग रहा है कि क्या सरकार वास्तव में इस पर रुचि रखती है या नहीं।
 
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