India-Russia: अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद सतर्क हुई OVL, रूस के वेंकोर ऑयलफील्ड में हिस्सेदारी पर ली कानूनी राय

ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद सतर्कता बरतने का फैसला किया है, जिसके तहत रोसनेफ्ट और लुकोइल की कई सहायक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इनमें वेंकोर ऑयलफील्ड भी शामिल है, जिसमें भारतीय कंपनियों की 49.9% हिस्सेदारी है। ओएनजीसी ने देशी और अंतरराष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों से राय मांगी है ताकि वह अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रख सके।

सूत्रों का कहना है कि भारतीय कंपनियों ने पिछले तीन वर्षों से अपने डिविडेंड की रकम वापस नहीं ला पाई है, जो अब तक करीब 1.4 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है। यह डिविडेंड रूसी कंपनियों से मिलता है और अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण इसे वापस नहीं लेने में भारतीय कंपनियां असमर्थ हैं।

ओएनजीसी ने 2016 में रोसनेफ्ट से 15% हिस्सेदारी खरीदी थी और उसी वर्ष अतिरिक्त 11% हिस्सेदारी खरीदी थी। इसके अलावा, भारतीय कंसोर्टियम ने 23.9% शेयर खरीदे। वेंकोर ऑयलफील्ड लगभग 416.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यह रूस के प्रमुख तेल उत्पादन केंद्रों में से एक है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारतीय कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अप्रत्यक्ष असर पड़ता है, तो इसका असर डॉलर ट्रांजेक्शन और विदेशी निवेश पर भी हो सकता है। इसलिए ओएनजीसी किसी भी संभावित उल्लंघन से पहले कानूनी रूप से पूरी स्थिति स्पष्ट करना चाहती है।
 
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ओएनजीसी ने देशी और अंतरराष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों से राय मांगनी है ताकि वह अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रख सके। यह अच्छा कदम है, खासकर जब पिछले तीन वर्षों से भारतीय कंपनियों ने डिविडेंड वापस नहीं ला पाई है। यह 1.4 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है!

वेंकोर ऑयलफील्ड में भारतीय कंपनियों की 49.9% हिस्सेदारी है, जो रूसी कंपनियों से मिलता है। इसे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण वापस नहीं लेने में भारतीय कंपनियां असमर्थ हैं।

अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद डॉलर ट्रांजेक्शन और विदेशी निवेश पर भी असर पड़ सकता है। ओएनजीसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रख सके। मुझे लगता है कि ये अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर नहीं पड़ेगा।
 
ओएनजीसी ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद तुरंत कदम उठाने की बात कह रही है लेकिन मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक दिखावा है, हमेशा से जानता था कि ओएनजीसी अपने शेयरधारकों को चुकाने में असमर्थ है। वेंकोर ऑयलफील्ड की ऐसी बड़ी सहायक कंपनी होने के नाते, इसका प्रभाव तुरंत भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, अगर यह बंद हो जाती है तो हमारे देश में बहुत बड़ा विदेशी निवेश और डॉलर ट्रांजेक्शन हिल जाएगा।
 
अमेरिकी प्रतिबंध का यह पूरा व्यापार पर असर पड़ रहा है... वेंकोर ऑयलफील्ड में भारतीय कंपनियों की 49.9% से भी कम नहीं छूटी है। मुझे लगता है कि अगर हम अपने पैसे सुरक्षित रखना चाहते हैं तो इन फिल्मों पर ध्यान न देना चाहिए।
 
अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर ओएनजीसी ने सतर्कता बरतने का फैसला किया तो अच्छा, लेकिन यह भी समझदारी की बात है कि उन्हें अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रखने के लिए देशी और अंतरराष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों से राय मांगनी पड़ी। यह भी पता चल गया है कि भारतीय कंपनियों ने पिछले तीन वर्षों से अपने डिविडेंड की रकम वापस नहीं ला पाई, जो अब तक करीब 1.4 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है। यह तो दिखाता है कि अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने में भारतीय कंपनियां असमर्थ हैं।
 
🤔 अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ओएनजीसी ने सतर्कता बरतने का फैसला किया, लेकिन यह तो स्वाभाविक है कि कुछ भी गलत नहीं होगा। मुझे लगता है कि रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाना ठीक था, लेकिन वेंकोर ऑयलफील्ड को इतना बड़ा प्रभाव मिलना तो थोड़ा असमानता दिखाता है।
 
अमेरिकी प्रतिबंधों ने हमें यह समझने पर मजबूर किया है कि विदेशी उद्योगों में हमारा भागीदारी इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि उनकी एक छोटी सी समस्या से हमारी खुद की स्थिति पर असर पड़ सकता है। ओएनजीसी ने बहुत समझदारी दिखाई है कि वह अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रखने के लिए देशी और अंतरराष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ले रही है।

इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन रूसी कंपनियों के प्रति अपने व्यापारिक संबंधों को तोड़ना चाहते हैं जिनके साथ हम 3 साल से डिविडेंड की रकम वापस नहीं ले पाए हैं। लेकिन कुछ ऐसा करने की जरूरत है ताकि हम अपनी सुरक्षा और परिस्थितियों को समझ सकें।
 
अरे दोस्त, यह तो बहुत बड़ी समस्या है! ओएनजीसी को अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रखने के लिए ऐसी बड़े पैमाने पर सावधानियां बरतनी चाहिए। और ये तो अमेरिकी प्रतिबंधों का ही एक परिणाम है, जिसके लिए क्या हमें अपने विदेशी मित्रों को दोषी ठहराना पड़ेगा? 🤔

मुझे लगता है कि ओएनजीसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने डिविडेंड के विकल्पों को मजबूत बनाए रखे और अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रखे। क्योंकि अगर अमेरिकी प्रतिबंधों का असर पड़ता है, तो यह हमारे डॉलर ट्रांजेक्शन और विदेशी निवेश पर भी पड़ सकता है। ऐसे में हमें अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने की जरूरत है! 💰

और यह तो एक बड़ी समस्या है कि भारतीय कंपनियों ने पिछले तीन वर्षों से अपने डिविडेंड की रकम वापस नहीं ला पाई है। इससे हमारे आर्थिक विकास पर भी असर पड़ सकता है! 📉
 
मुझे लगने को तय है कि अमेरिकी प्रतिबंधों ने हमारी अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बुरा असर देगा। ओएनजीसी वाली भारतीय कंपनियां पहले से ही अपने डिविडेंड को नहीं ले पा रही थी, तो अब अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यह और भी खराब हो जाएगा। मुझे लगता है कि सरकार को इस पर और सख्ती से नज़र रखनी चाहिए।
 
ओएनजीसी ने बहुत सही किया है लोगों द्वारा यहाँ विवाद हो रहा है कि वे अमेरिकी प्रतिबंधों पर तुरंत जवाब नहीं दे रहे हैं लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि उन्हें अपने शेयरधारकों को सुरक्षित रखने का यह तरीका ही सही था। भारतीय कंपनियों को अपने डिविडेंड वापस लेने में कई समस्याएं आ रही थीं और अगर अब ओएनजीसी ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बारे में सोचा, तो शायद उन्हें पहले ही यह जानकर ही चिंता होती। 🤔
 
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ओएनजीसी ने जो फैसला किया, वाह! लगता है कि उनके लिए बहुत बड़ा खतरा था। रोसनेफ्ट और लुकोइल से जुड़ी इन सहायक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना एक बड़ा झटका होगा।

मुझे लगता है कि ओएनजीसी ने सही फैसला किया, उनके शेयरधारकों को सुरक्षित रखने के लिए। लेकिन यह भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

मुझे लगता है कि हमें इन प्रतिबंधों के बारे में और जानने की जरूरत है। क्या अमेरिकी सरकार ने इन प्रतिबंधों को लागू करने से पहले भारतीय कंपनियों को नहीं बताया?

कोई भी ऐसी स्थिति में जाने से पहले हमें अपने कानूनी विशेषज्ञों से बात करनी चाहिए। इसके अलावा, डॉलर ट्रांजेक्शन और विदेशी निवेश पर भी प्रतिबंधों का असर पड़ सकता है।
 
अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले भी ओएनजीसी ने अपनी कंपनियों में गहराई से बदलाव कर लिया था, लेकिन लगता है उनकी योजना नहीं बनी। अब जब अमेरिका ने रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं, तो ओएनजीसी को अपने शेयरधारकों से जुड़ना होगा। यह एक अच्छा मौका है कि वे अपने प्रारंभिक निवेश के बारे में जानकारी देखें।
 
ओएनजीसी ने यह फैसला लेने में देरी नहीं की चाहे वह अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने का तरीका हो। इसके पास भारतीय शेयरधारकों को दोष देने का कोई रास्ता नहीं है। ओएनजीसी ने अपने डिविडेंड वापस लेने में भी बहुत हिचकिचाहट नहीं की। तीन साल से उनका पैसा जा रहा है और अब तक करीब 1.4 अरब डॉलर की बेरखास्ती के साथ, यह एक बड़ा नुकसान है।
 
तस्वीर 📺👀 अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी ओएनजीसी निरंतर रहेगी, लेकिन यह तय नहीं है कि क्या उनके शेयरधारकों से मुनाफा बनेगा। उन्हें जल्द ही अपने डिविडेंड वापसी पर गहराई से सोचना चाहिए, फिर अच्छा निर्णय लेने की उम्मीद कर सकते हैं।
 
मैंने पढ़ा है कि ओएनजीसी ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद सतर्कता बरतने का फैसला किया है, यह तो अच्छा है क्योंकि हमें अपने शेयरधारकों की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन इतनी बड़ी कंपनी के सामने इस तरह का प्रतिबंध देने वाली अमेरिकी सरकार की राय मुझे थोड़ी अजीब लगती है, जिसने पहले तो रोसनेफ्ट की सहायक कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाए हैं। 🤔

मैं सोचता हूं कि अगर हमारी कंपनियां अपने डिविडेंड की रकम वापस नहीं ला पाई हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनकी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध में शामिल नहीं हैं। इसलिए ओएनजीसी को अपने शेयरधारकों की सुरक्षा के लिए ज्यादा विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए। 📊
 
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